बैंगन से चूत चोदी माँ को गांड मरवाते देख कर

रंडी माँ की गांड चुदाई हेल्लो फ्रेंड्स कैसे है आप सब. मैं निशिका क्रेजी सेक्स स्टोरी की बहुत बड़ी फेन हूँ. आज दरअसल हमारे प्रिंसिपल का देहांत हो गया था इसलिये स्कूल में पहले ही छुट्टी हो गई थी और मैं जल्दी घर आ गई थी। मेरे पास एक स्पेयर चाबी रहती थी तो मैं भीतर आ गई और बेडरूम में खुले दरवाजे से यह सब देखकर जो अन्दर चल रहा था, मैं पसीने पसीने हो गई। बैंगन से चूत चोदी माँ को गांड मरवाते देख कर.

मैं जब झांक कर देखी तो आयुष अंकल मम्मी की गाँड़ में लण्ड पेल रहे थे। दोनों का फेस दरवाजे के ऑपोजिट था इसलिये मुझे साफ दिख रहा था। मम्मी डॉगी बनी हुई थी। उनकी गोरी मोटी जांघ और बड़ी सी चूतड़ के बीच में उनकी काली सी मोटी चूत भीगी भीगी लग रही थी। चूत की दरार से एक मोटा लसलसा गोंद जैसा धार लटककर बह रहा था और जाकर जांघ में चिपक गया था।

मम्मी की चूतड़ के बीच आयुष अंकल का लण्ड पिस्टन की तरह चल रहा था जैसे खल में लोढे से पीटते हैं न, वैसा। ओह! पीछे से कैसा मस्त लग रहा था आयुष अंकल का बदन। कसी हुई पिंडली, जांघ से लेकर एड़ी तक घने बाल और पत्थर की जैसी सख्त चूतड़। पीठ के एक एक मसल्स ऐसे जैसे छेनी हथौड़ी से तराशा गया हो और पसीने बूंदों से चमकता हुआ।

आयुष अंकल मम्मी की गाँड़ पर चढ़ कर चोद रहे थे। मम्मी सिसकारी ले रही थी। उन्होंने अपनी गाँड़ उचका रखी थी और आयुष अंकल का खीरे जैसा तगड़ा लण्ड धप धप उनकी गाँड़ में दौड़ रहा था। मेरी धड़कन इतनी तेज थी कि मैं अपने साँस पर काबू नहीं कर पा रही थी। देह में झुनझुनी भर गई थी और सर भन्ना रहा था।

मॉम का अंकल से अफेयर था यह अंदाजा तो मुझे था पर इतनी नीच औरत होगी वह यह मेरे खयाल में भी नहीं आया था। अभी कल ही तो पापा गये थे गल्फ। वे वहीं काम करते थे। साल में दो बार एक एक महीने के लिये आते थे और चले जाते थे। पापा के सबसे करीब के दोस्त हैं आयुष अंकल।

पापा के यहाँ रहने पर लगभग हर रोज यहाँ आते रहते थे पर उनके जाने के बाद भी रोज उनका यहाँ आना और मॉम से सटकर बैठना बतियाना मुझे अच्छा नहीं लगता था। मुझे संदेह था पर आज तो सब देख ली मैं, मॉम आयुष अंकल से गाँड़ मरवा रही थी। उफ्फ! इसमें अंकल का भी तो पूरा दोष नहीं कहेंगे न? मॉम भी तो अपनी गाँड़ उनको मारने दे रही थी तभी तो वह मॉम की गाँड़ मार रहे थे।

सिसकी लेकर गाँड़ मरवाने का मजा भी तो मॉम ही ले रही थी। मॉम की बूर से टपकता आयुष अंकल का वीर्य यह गवाही दे रहा था कि मॉम अपनी बूर पहले ही चुदवा चुकी थी और अब वह गाँड़ मरवा रही थी। लगभग पांच मिनट तक मॉम की गाँड़ मारते रहने के बाद आयुष अंकल ने एक जोर का धक्का मॉम की गाँड़ में दिया पूरा लौड़ा मॉम की गाँड़ में उतार दिया सिर्फ उनका आँड़ बाहर रह गया।

उसी हालत में वह मॉम की गाँड़ में लण्ड हुचकाने लगे और मादचोद साली रांड जैसी गाली देते हुए चीखने लगे और फिर लंड खींचकर जोर जोर से मसलते हुए मॉम की गाँड़ पर वीर्य गिराने लगे। वह जोर जोर से आह आह कर रहे थे और लण्ड मसल रहे थे। ऐसी आवाज और चीख जैसे किसी सांढ को भाला मार दिया गया हो।

पहले तो गाढ़े वीर्य की तीन पिचकारी मम्मा की गाँड़ पर मारी फिर लण्ड को निचोड़ निचोड़ कर पानी गिराने लगे। आयुष अंकल का वीर्य मम्मा की गाँड़ और बूर से ढलक कर टप टप बिछावन पर गिरने लगा। मैं समझ गयी कि वे लोग अब पोजिशन बदलेंगे। इससे पहले मैं वहाँ से खिसक गई। भाग कर सीधा छत पर गई और अपना बैकपैक पटक कर बैठ गई।

इतनी गंदी चुदाई देखकर मेरी हालत ही खराब हो गई थी। वैसे मैं पोर्न देखकर बूर में उंगली करने लग गयी थी। पिछली बार ही डैडी आये थे तो मेरे लिये हाई क्लास मोबाइल ला दिये थे। बड़ी स्क्रीन वाली। रात को हाई रिजॉल्यूशन में पॉर्न देखकर खुद ही अपनी बूर को उंगली से चोद लेती थी। ओह! मजा आ जाता है। चूची दबाते हुए बूर में उंगली पेलना। आह! मेरी बूर मॉम की गाँड़ चुदाई देखकर लसफसा गई थी।

स्कर्ट में हाथ डाल कल लसलसाई बूर को रगड़ने लगी। ईस्स! आज मैंने जीता जागता लण्ड पहली बार देखा था। हाय! आयुष अंकल का लण्ड जैसे दिमाग में छप सा गया था। कैसा मोटा और लम्बा, जूसी लण्ड और लण्ड के नीचे कस कर चिपका हुआ आँड़! हाय! मैं तो अब झड़ी तब झड़ी हो गई। मैंने हाथ निकाला तो उंगलियाँ बूर के रस से सनी हुई और बूर की उफ्फ वो कमसिन बू!

सुगंध से मैं पागल हो गई और पागलपन में अपनी उंगली से बूर का जूस चाटने लगी। हाय राम! फक! मैं एकदम से उबल रही थी। कुछ चाहिये था मुझे, कड़ा, लम्बा, सॉलिड और स्मूथ जिसपर बूर रगड़ कर मैं चुदाई जैसा मजा ले सकूँ। आह! आज मैं उंगली पेलकर झड़ना नहीं चाहती थी, कुछ लण्ड जैसा चीज मिले तो उसपर बूर रगड़ कर झाड़ लूँ। ओह! मैं ढूंढने लगी पर कुछ हाथ नहीं लगा। “बैंगन से चूत चोदी”

तभी मुझे खयाल आया कि बैगन सही रहेगा। मैंने तभी प्लान बना लिया कि रात को बैगन से बूर चोदुंगी अपना। आह! मैं पागल हो रही थी। काफी देर छत पर बिताने के बाद मैं घर गई। अंकल अब जा चुके थे और मॉम नहा रही थी। उसके बेड पर मैंने देखा आयुष अंकल का वीर्य का दाग अभी भी भीगा भीगा सा लगा हुआ था। मैं थरथरा गई। मेरी बूर एकदम से चुभकने लग गई।

वासना से भर गई मैं और उस दाग को सूंघने लगी। फक्क! क्या मर्दाना स्मेल था, लगा जैसे मैं आयुष अंकल के लंड को ही सूंघ रही थी। ओह माई गॉड! पागल हो गई मैं तो! उफ्फ! मम्मा पकड़ न ले इसलिये वापस ड्राइंग रूम में आकर सोफे पर बैठ गई। उधर मॉम नहाकर निकली तो मुझे देखकर अकचका गई। “अरे निशिका! तू इत्ती जल्दी आ गई? कब आई?” मारे शरम के मैं मॉम की तरफ देख भी नहीं पा रही थी।

अभी अभी जिन्हें गाँड़ मरवाते देखा हो उसकी ओर देखने में बड़ी लाज आ रही थी यार! मन में ग्लानि भी हो रही थी कि मैंने अंकल का वीर्य बेड पर से सूंघा था। बूर एकदम बदहवास रंडी की तरह पानी छोड़ रही थी। दूसरी ओर देखते हुए ही मैंने स्कूल से जल्दी छुट्टी हो जाने की बात बता दी। “ठीक है” इतना कहकर मॉम फिर बेडरूम की तरफ भागी।

मुझे पता था कि वह बेडशीट बदलने गई होंगी। मेरे मन में अब भी वही चुदाई का सीन फिल्म की तरह चल रहा था। दिन भर मैं वासना की गरमी में जलती रही। बार बार बाथरूम जाती और बूर खुरचने लगती। कब रात होगी पता नहीं और मैं नंगी होकर बूर में बैगन पेलने का मजा लुंगी। मैं एकदम नशे की हालत में थी। स्टडी आवर में भी मैं छुप छुप कर बूर कुरेदती रही।

मन करता कलम पेल लूं बूर में फिर मन को मनाती कि अभी नहीं यार! रात होने में देर ही कितनी है। किचेन में जाकर चुपचाप दो पतले पतले बैंगन लाकर अपने कमरे में छुपा दी। ओह यह सब करते हुए कितनी हॉट हो रही थी मैं! हाय! क्या बताऊँ!! वह समय आ ही गया। मैंने डबल चेक किया कि मॉम सो गई हैं। रात के सवा बारह बज रहे होंगे जब मैंने अपने कोमल बदन पर से अंतिम कपड़ा अपना कछिया भी उतार दी।

बूर से इतना लस्सा टपका था कि कछिया भींग गई थी। बूर की मस्त सुगंध आ रही थी। मेरी आँख वासना के बुखार से तप रही थी, बदन पर काबू नहीं था। नंगे बदन फर ए सी की ठंढी हवा जादू कर रही थी। मैंने ड्रेसिंग टेबल को बेड से सटाया और खुद के नंगे बदन को निहार निहार कर बूर से खेलने लगी।

चूची फर थोड़ा सा तेल लगाकर एक हाथ से मुट्ठी भर की चूची मसलने लगी और दूसरे हाथ से बूर में उंगली करने लगी। जब बूर के पानी से हाथ लसलसा जाता तो चाट लेती। मन में वही फिल्म चल रही थी आयुष अंकल मॉम की गाँड़ मार रहे थे। मैंने अब बैगन ले लिया और बूर के पानी से चिकना किया। लग रहा था जैसे वह आयुष अंकल का लंड हो। उफ्फ! “बैंगन से चूत चोदी”

अब मैं खुद को बैगन से चोदने वाली थी। चूची एकदम तनकर टाईट हो गई थी। काम से देह काबू में नहीं थी। मैंने बैऐगन पकड़कर बूर की छेद पर लगाया तो वह फिसल गया। बार बार फिसल रहा था ऐसा लग रहा था मानो आयुष अंकल का लौड़ा बूर के छेद से टकराकर फिहल रहा हो। मुँह से बरबस आह निकल जा रही थी।

मन मन में बोल पड़ी आयुष अंकल चोद लो न मेरी कुतिया बूर को। आह! और मैंने आधा बैगन पेल लिया बूर में। आह! ज्यादा देर नहीं रख पाई बैगन को बूर के भीतर। दर्द होने लगा। चीख निकल गई मेरी। फिर कोशिश की पर दर्द के कारण नहीं कर पाई। बूर से निकले हुए बैगन को चूसने लगी।

फिर हिम्मत नहीं हुई कि बैगन पेलने का फिर ट्राई करूँ, सच बता रही हूँ फिर मैंने बैगन से चुदने का खयाल छोड़ ही दिया। उंगली से ही बूर चोदने लगी। आज कुछ नया की, बाँये हाथ की एक उंगली अपनी गाँड़ में भी पेल लिया। क्या मस्ती चढ़ी थी मुझे। बिस्तर गीला हो रहा था। बिस्तर के गीलेपन को भी चाट लेती थी।

गाँड़ से उंगली निकाल कर सूंघने में जो गंदा जोश भरता था उसका तो क्या ही बताऊँ मैं! उफ्फ! फक! तीन बजे रात तक मैं इसी तरह अपनी बूर और गाँड़ उंगली से चोदती रही और जब झड़ी तो ऐसा लगा जैसे बूर के भीतर का ज्वालामुखी फट पड़ा हो! गाँड़ में कुछ घुसा हो तो झड़ने का मजा दस गुना बढ जाता है। फिर मैं लगभग बेहोश ही हो गई। कुछ भी काबू में नहीं रहा। वैसी ही हालत में सो गई।

आप कहानी पर कमेंट देना तो आगे बताउंगी कि कैसे मैंने आयुष अंकल को अपने सामने मॉम को चोदने के लिये मजबूर किया और खुद भी आयुष अंकल के बूर और गाँड़ मरवाने लगी। मॉम के साथ थ्रीसम की। हाय! लाईफ मस्त है!

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