Nai XXX Hindi Story, Aunty Ki Kamukata, मेरा नाम संजू है, मैं अभी अपनी पढाई कर रहा हूँ. मेरा घर एक गाँव में हैं इसलिए मैं शहर में रूम ले कर अकेले रहता हूँ. मेरी माकन मालकिन का नाम संध्या है. संध्या शादी होने के बावजूद भी अकेली रहती थी। उसके पति विदेश में काम करते थे, पैसे की उसे कोई कमी नहीं थी। संध्या और उसके सास-ससुर घर पूर्वी हिस्से में रहा करते थे। नीचे का अधिक हिस्सा उसी के पास था। उसके सास ससुर उसकी तरफ़ नहीं आते थे। वो सामने के कमरे में ही रहा करते थे। संध्या को खड़ा लंड दिखाकर ललचाता रहता था मैं.
संध्या स्वयं भी अपने हिस्से को अलग रख कर उसे दरवाजे के द्वारा बन्द रखा करती थी। संध्या का समय अधिक समय चौक में ही काम करते बीतता था। वो अपने कमरे में फ़ुर्सत के समय अधिकतर लेटी लेटी अपने पति के साथ गुजारे चुदाई व संध्यान्टिक पलो को याद किया करती थी।
संध्या को अपने पति के साथ बिताये हुये उत्तेजक पल सोचते हुये उसका मन अन्तर्वासना से भर उठता था। वो अपने कपड़े उतार कर फ़ेंक देती थी। अपने कामांगों को मसलते हुये बिन जल मछली की भांति तड़पने लगती थी। फिर वो अपनी दोनों टांगें फ़ैला कर बेशर्मी से अपनी योनि में अंगुली घुसाने लगती थी। पैन के पीछे का भाग अपनी गाण्ड के छेद में घुसा लेती थी। उसका मन काम वासना से फ़ट सा जाता था।
अपने कोमल अंगों के साथ वो बलात्कार जैसा व्यवहार करने लगती थी और इसका अन्त उसकी चूत में से पानी निकल कर होता था। संध्या अपने घर में ऊपर रहने वाले मुझ किरायेदार छात्र के नाम पर भी इस आग, अपना कामरस निकालती थी। वो भरकस प्रयत्न करती कि वो मैं उसके प्रेमपाश में चला जाऊ और ये सारा प्रेम रस मुझ पर न्यौछावर कर दे।
संध्या की छत इस प्रकार की थी कि उसका कमरा छत से जरा ऊंचा था और रोशनदान उसकी छत से ऊपर थे और छत पर खुलते थे। रात को बाहर अंधेरा होने के कारण मुझको उन रोशनदान से झांकने में कोई परेशानी नहीं आती थी।
सो मुझे भी उसे अधिकतर मौका मिलते ही उसे चोरी छुपे ऊपर से झांक झांक कर देखा करता था। ऊपर से देखने के कारण मुझे संध्या के स्तन का अधिक भाग साफ़ दिखाई देता था। वो वासना से भर कर जब तड़पती थी तब मैं अपने लण्ड को मुठ्ठी मार मार कर सारा रस वहीं छत पर निकाल देता था। जवान लड़का था, संध्या के स्तनों को निहारते हुए मुझे बहुत उत्तेजना हो जाती थी।
संध्या को यह सब पता था। जब वो पानी का काम करती थी तो उसे पानी में मेरी परछाई नजर आ जाती थी। आज भी मैं उसे छिप कर उसके स्तनों को निहार रहा था। संध्या ने जानबूझ कर अपने स्तन उसे दिखाने के लिये सामने का एक हुक खोल दिया करती थी।
फिर संध्या ने मुझे झांकते हुये पकड़ लिया और अनजान बनते हुये कहा,”अरे संजू, कैसे हो?”
ऐसे अचानक पकड़ा जाने से मैं बौखला उठा,”जी आण्टी, ठीक हूँ।”
“चाय पीनी हो तो आ जाओ नीचे, मैं बनाने जा रही हूँ।”
“जी ! आता हूँ। ” वो इन्कार नहीं कर पाया और नीचे आ गया। उसकी सीढ़ियों का दरवाजा चौक में भी खुलता था। उनकी दोस्ती का यह पहला कदम था। संध्या ने धीरे धीरे उसे अपने जाल में फ़ंसाना आरम्भ कर दिया था।
वहीं दूसरी ओर मैं यह सोचता था कि संध्या को मैं जल्दी ही चक्कर में ले लेगा। दोनों ही एक दूसरे पर डोरे डालने में लगे हुये थे, दोनों एक दूसरे की तड़प को जानने लगे थे। अब हम धीरे धीरे खुलने लगे। मैं तो अब अधिक समय संध्या के पास बिताने लग गया था। दोनों खूब हंसते, बतियाते और फिर बस उनमे आग भरने लग जाती, फिर हम उसके आगे नहीं बढ़ पाते थे। एक बार मैं संध्या से खुलने के लिए तीन सीडी ले आया।
संध्या ने पूछा,”किस फ़िल्म की सीडी है?”
तो मैंने कहा,”आण्टी यह तो मुझे पता नहीं है, मेरे दोस्त ने कहा था कि ये नई हैं, देख लेना।”
“चलो शाम को देखेंगे, पहले खाना बना लूँ और सास-ससुर को खिला दूँ फिर आराम से देखेंगे।”
संजू तीनों सीडी वहीं रख कर ऊपर चला गया। रात को करीब नौ बजे संध्या ने संजू को आवाज देकर नीचे बुला लिया और सी डी लगाने के लिये कहा।
मैंने एक सी डी लगाई। वो एक पुरानी फ़िल्म थी। संध्या ने कहा कि दूसरी लगा कर देखो। दूसरी वाली सीडी ब्ल्यू फ़िल्म थी। जैसे ही सी डी चालू हुई संध्या का मन खिल गया। जैसे ही उसमें सेक्सी सीन की शुरूआत हुई, मैं उसे बन्द करने के लिये उठा।
“अरे यह क्या सी डी दे दी, वो साला…”
“संजू, अरे रुक तो जा, देखें तो ये क्या कर रहे हैं?”
“आण्टी, नहीं! यह तो ऐसी-वैसी फ़िल्म है।”
“चुप रह, देखने तो दे!” संध्या ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे बैठा लिया। मैं मन ही मन अपनी सफ़लता पर खुश हो रहा था। हीरो लड़की के कपड़े उतारने में लगा था और लड़की अपने आप को शरमा कर बचाने की कोशिश कर रही थी। संध्या यह सब देख कर उत्तेजित होने लगी थी।
कुछ ही देर लड़के ने लड़की को अपने वश में कर लिया और उसे चोदने लगा।
“आण्टी, मुझे तो शरम आ रही है।”
“ओफ़्फ़ोह, चुप रह ना … देख तो कितना मजा आ रहा है।”
संध्या तो जानती ही थी कि मैं उस पर मरता है तो फिर शर्म काहे की। संध्या चुदाई देख कर बेशर्म हो कर अपने स्तनों को धीरे धीरे दबाने लगी थी। इधर मेरी हालत भी पतली होती जा रही थी।
फ़िल्म समाप्त होते ही, संजू सीधा ऊपर भागा। उसका तो वीर्य पजामे में ही निकल गया था। दूसरी ओर संध्या भी उत्तेजित हो कर झड़ चुकी थी। अब तो संध्या उससे रोज ही ब्ल्यू फ़िल्म लाने की फ़रमाईश करने लगी थी।
संध्या इस काम के लिये मुझको पैसे भी देने लगी थी। अब शाम को रोज ही दोनों हल्के कपड़े पहन कर फ़िल्म देखा करते थे। फ़िल्म देखते देखते तो मेरा लण्ड सख्त हो कर पजामे में से उभर कर संध्या को ललचाने लगता था।
फिर शायद वो मुझको मेरी नासमझी पर गाली देने लगती है। दोनों फ़िल्म का आनन्द लेते और अपने पजामे ही झड़ जाते है। उनके पजामे अब रोज ही काम रस से नीचे से भीग जाते है। दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्करा भी देते थे। लेकिन अभी तक उन दोनों का चुदाई का काम आरम्भ नहीं हो पाया था।
आज मैं जानकर संध्या के पास ही बैठ कर फ़िल्म देख रहा था। फ़िल्म में चुदाई के उत्तेजनापूर्ण सीन चल रहे थे। मैंने हिम्मत करके संध्या के गले में हाथ डाल दिया। संध्या ने उसे एक बार मुझ को अपनी बड़ी बड़ी आँखों से देखा, फिर वो फ़िल्म देखने लगी।
मैंने रास्ता साफ़ जान कर अपना हाथ नीचे करते हुये उसके स्तनों की तरफ़ बढा दिया। संध्या को एक झुरझुरी सी हुई, शायद वो भी इसी की राह देख रही थी। फिर उसके हाथ स्तनों की ऊपर की गोलाईयों से छूने लगे, संध्या के बदन को गुदगुदाने लगे। संध्या ने तिरछी निगाहों से मेरे पजामे की ओर देखा। वो हमेशा की तरह उफ़ान पर था। पजामे में से वो सीधा सख्त हो कर लकड़ी की तरह तना हुआ था।
अचानक मैंने अपना आपा खोते हुये संध्या के स्तनों को दबा डाला। संध्या के मुख से एक तेज सिसकारी निकल पड़ी। संध्या का हाथ मेरे लण्ड की तरफ़ बढ़ चला और उसके कड़क लण्ड को संध्या ने पकड़ कर जोर से दबा डाला। दोनों के मुख से मधुर सीत्कार निकल पड़ी। दोनों खुलने लगे थे। सीमायें अब टूटने लगी थी।
“मैं छोड़ूंगा नहीं अब तुझे!”
“मैं भी नहीं छोड़ने वाली तुझे, साले बहुत तड़पाया है तूने मुझे!”
“तड़पाया तो तूने है मुझे, साली आगे बढ़ती ही नहीं थी!”
“तो तू भी कहाँ बढ़ता था। बस फ़िल्म देख कर अपना माल पजामे में ही निकाल देता था।”
“आज तो तेरी चूत में माल निकालूंगा, तुझे चोद डालूंगा।”
“हाय रे मेरे संजू, तो अब तक क्यो नहीं चोदा?”
“अरे राण्ड तू कहती तो सही … चूत का भोसड़ा बना देता।”
“अरे तू, एक बार मेरे पर चढ़ तो जाता, मैं तो अपनी चूत उछल कर तेरे लौड़े को अपने में समा लेती, आप ही चुद लेती!”
दोनों वही सोफ़े पर जैसे कुश्ती लड़ने लगे। दोनों एक दूसरे के गुप्त अंगों को दबाते रहे, जोश में चूमा-चाटी करते रहे। जोश-जोश में मैंने अपना पजामा खोल कर लण्ड संध्या के मुख में घुसेड़ दिया और जोर जोर से धक्के मारने लगा।
मेरा दूसरा हाथ संध्या की चूत को दबा रहा था, मसल रहा था। उत्तेजना की अधिकतम सीमा दोनों ही पार कर चुके थे। तभी मैंने अपना वीर्य संध्या के मुख में उगल दिया। वही दूसरी ओर संध्या की चूत भी पिघल कर पानी पानी हो गई थी। वो भी अत्यधिक उत्तेजना सहन नहीं कर पाई थी एव झड़ने लगी थी। दोनों अलग हो गये और एक दूसरे से नजर मिला कर देखने लगे।
“आण्टी, सॉरी, यह सब जाने कैसे हो गया, मुझे माफ़ करना! मैं चलता हूँ।”
“अरे जो हो गया सो हो गया, चलो अब आगे फ़िल्म देखते हैं।” संध्या ने उसका हाथ थाम लिया।
“फिर आण्टी, मुझे कुछ कुछ होने लगता है।”
‘तो क्या हुआ, फिर तो चोद ही देना ना मुझे!”
मैं संध्या के पास सरक आया,”आपसे कौन दूर रह सकता है आण्टी।”
“अच्छा तो मैं तेरे पर लण्ड पर बैठ जाती हूँ, बस?”
जैसे ही संध्या खड़ी हुई, मैंने उसका हाथ पकड़ लिया, संध्या की कमर चिपकते हुये बोला,”हाय आण्टी मेरा लौड़ा … ?”
उसका लण्ड एक बार फिर से सख्त हो कर संध्या की गाण्ड में दबाव डालने लगा था।
“हाय रे, ऐसे धीरे से ना घुसा मेरी पिछाड़ी में, मेरी मार ही दे ना!”
मैंने अपने हाथ बढ़ा कर उसके अधखुले हुये ब्लाऊज में से उसकी चूचियाँ पकड़ ली।
“ओह, जरा जोर से दबा, उफ़्फ़्फ़ मेरी जान ही निकाल देगा क्या?”
“बस आण्टी, एक बार चुदा लो, मुझे सुकून मिल जायेगा।”
“मेरे राम जी, जाने कितने दिनो से मैं बिनचुदी बैठी हूँ, आज तेल लगा कर पेल दे।”
‘मेरी आण्टी, तेल कहाँ है?”
“आजा, वो रहा, वहा बिस्तर पर चल, आराम से तेल लगा कर पेलना।”
संध्या ने अपनी क्रीम की डिबिया मेरे हाथ में थमा दी। दोनों ही खुशी के मारे लिपट गये। दोनों के अधर मिल गये। संध्या के निचले होंठों को मेरे होंठ कुचल रहे थे। दोनों के मुख थूक से लबरेज हो चुके थे। “संध्या को खड़ा लंड”
जीभ मुख गुहा में घुस कर आनन्द ले रही थी। दोनों कामाग्नि में जलते हुये एक दूसरे के शरीर में घुसे जा रहे है, जोर जोर से चूम रहे थे। संध्या अपने बिस्तर पर नीचे तकिया लगा कर उल्टी लेट गई।
उसके गोल गोल नरम चूतड़ उभर आये। मैंने संध्या की गाण्ड थपथाई और उसे धीरे से दोनों हाथों से चीर दी। उसका अन्दर का भूरा भूरा छिद्र सामने आ गया। क्रीम को अंगुली में भर कर मैंने धीरे धीरे छिद्र पर मलना आरम्भ कर दिया। संध्या गुदगुदी के मारे मचल उठी।
“अह्ह्ह, मजा आ गया, अब जरा अंगुली घुसा दे, उईईई … हां … हाय राम, कैसा आनन्द है।”
मैंने क्रीम से अंगुली भर भर उसकी गाण्ड में अंगुली घुसा घुसा कर क्रीम लगा रहा था। संध्या मस्ती में सिसकारियाँ भर रही थी थी, उसके आनन्द को देख कर मैं भी खुश हो रहा था।
‘बस अब गाण्ड चोद दे राजा!”
“मजा आ रहा है ना?”
“अरे लण्ड से ज्यादा मजा आयेगा, घुसेड़ तो सही!”
मैंने अपना कड़ा लण्ड उसकी गाण्ड के छिद्र पर रखा और अन्दर दबाया।
“अरे जोर लगा ना, चल दबा दे जोर से!”
संध्या ने अपनी गाण्ड का छेद ढीला कर दिया। छेद ढीला होते ही मेरा सुपारा फ़क से अन्दर उतर गया।
“उईई माँ, यह हुई ना बात, अब पेल दे जानू!”
मेरे लण्ड में भी जोर की कसावट से मीठा मीठा सा रस महसूस हुआ। मैं संध्या की पीठ पर लेट गया और फिर अपनी गाण्ड को जोर से उसकी गाण्ड पर दबा दिया। लण्ड हौले हौले अन्दर सरकने लगा।
संध्या खुशी के मारे किलकारियाँ मारने लगी। कुछ ही समय में मेरा लण्ड पूरा अन्दर उतर चुका था। मैंने अपने हाथ उसकी सीने पर जमा लिये और बोबो को कस कर दबा लिया। फिर उसकी कमर ऊपर नीचे हो कर संध्या की गाण्ड को चोदने लगी। दोनों की मीठी मीठी आहें कमरे में गूंजने लगी।
“हाय कितने दिनों बाद चुदी है मेरी गाण्ड!”
संध्या नीचे दबी हुई अपनी मीठी आहों से मेरे मन में मीठी तंरगों का संचार कर रही थी। संध्या का पूरा सहयोग पाकर उसमे जोश भर आया था। वो संध्या के तन को अच्छी प्रकार से भोगना चाहता था। “संध्या को खड़ा लंड”
संध्या भी मेरे तन का मजा लेना चाहती थी। दोनों ही एक दूसरे के शरीर के भूखे थे। दोनों ही अपनी कामाग्नि बुझाना चाहते थे। संध्या की गाण्ड आराम से चुद रही थी। उसकी तंग गाण्ड के आनन्द से संजू मस्त हुआ जा रहा था। अन्त में उसने अपना अन्तिम भरपूर शॉट लगा कर संध्या की गाण्ड में अपना वीर्यदान कर दिया।
संध्या इस अनोखे चिपचिपे, रसीले वीर्य को पाकर धन्य हो गई। मेरा लण्ड ठण्डा होने पर अपने आप फ़िसलता हुआ बाहर निकल आया। संध्या ने सीधे हो कर प्रेम वश मुझको अपनी छाती से लगा लिया और उसे खूब प्यार किया।
मैं तो जवानी की बहार में बह निकला था। दो बार झड़ कर भी संध्या को भोगना चाहता था। इसी लिपटा लिपटी में दोनों के दिलों में फिर से आग भर आई। संध्या तो गाण्ड मरवा कर और भी चुदासी हो गई थी।
उसकी चूत तो गर्म हो कर जैसे तपने लगी थी। अभी तक उसकी चूत नहीं चुदी थी। संध्या ने जोश में भर कर मुझको अपनी छांव में ले लिया। बादल बन कर वो उस पर छा गई। मैं संध्या के तन के नीचे दबने लगा।
संध्या अपनी टांगें समेट कर उसके लण्ड पर बैठ गई और हौले से उठ कर उसके तने हुये लण्ड पर अपनी चूत का छेद रख कर बैठ सी गई। पहले तो उसने अपनी चूत के पानी को अपने रूमाल से साफ़ किया और फिर उसके लण्ड को अपनी चूत में अन्दर सरकने का आनन्द लेने लगी।
उसकी चूत अन्दर से उत्तेजना से तंग हो गई थी। अन्दर से वासना की उत्तेजना से उसकी चूत की मांसपेशियाँ खिंच कर सख्त हो गई थी जिसे वो लण्ड को भीतर समाते हुये महसूस कर रही थी। संध्या की आँखें मस्ती में बन्द होने लगी थी। “संध्या को खड़ा लंड”
कुछ ही देर में लंड के सुपाड़े को भीतर बच्चेदानी के मुख पर टकराने का अहसास हुआ। एक मीठी सी गुदगुदी मेरे तन में भर गई। संध्या ने अपनी चूत को अपनी बच्चेदानी पर हौले से रगड़ा। जैसे वो जन्नत में खोने लगी। मेरे लण्ड का डण्डा उसके दाने पर रगड़ खाने लगा था। संध्या आनन्द के मारे बल खाकर मुझसे जोर से लिपट गई और उसके मुख से सिसकारियाँ फ़ूट पड़ी।
“जरा धक्का तो लगाओ राजा … आह मैं तो मरी जा रही हूँ।”
“आण्टी, तू नीचे आ जा, फिर तुझे दबा कर पेलूंगा!”
“ओह नहीं रे … बस चोद दे मुझे … मेरे जानू, नीचे से लगा रे धक्का!”
मैंने अपनी कमर नीचे से उछाली तो संध्या चहक उठी।
“आह रे, मैं मर गई … मेरे राजा, और लगा ना!”
मैं कोशिश करके कमर उछाल कर उसे चोदने लगा। पर जल्दी वो थकने लगा। मैं तब संध्या को दबा कर नीचे कर लिया। संध्या तड़प कर मेरे नीचे आ गई और मैंने उसे अपने ताकतवर शरीर के नीचे दबा लिया। अब संध्या को चोदने में कोई दिक्कत नहीं आ रही थी, मैं जम कर धक्के मार रहा था। “संध्या को खड़ा लंड”
“आह्ह आह्ह्ह … यह बात हुई ना। चोद दे यार, बहुत मजा आ रहा है।”
“ये ले … उफ़्फ़्फ़ … ये जोर से ले…” मैं भी पूरी तन्मयता के साथ उसे चोद रहा था। संध्या आनन्द की सीमा को पार करने लगी। उसके चूचे दबा दबा कर मरोड़ रहा था,, मसल रहा था। इससे संध्या मदहोशी की चरमसीमा में पहुँचने लगी थी। तभी जैसे संध्या की आंखें उबल पड़ी। उसके जबड़े की हड्डियां तक उभर आई। दांत जैसे एक दूसरे पर किटकटाने लगे थे।
“उम … संजू … हाय राम… मैं तो गई … हाय रे … आह संजू …” और एक चीख मार कर संध्या ने अपना कामरस छोड़ दिया। धीरे धीरे वो स्खलित होती जा रही थी। संध्या अब भी अपनी चूत में लण्ड ले रही थी। मेरे लंड के तेज शॉट अभी भी चल रहे थे।
“बस … बस संजू बस कर… लग रही है … बस कर!”
“ओह्ह, आण्टी मैं तो आया … आह्ह रे … मेरा तो निकला … संध्या आण्टी … तेरी तो … ओह्ह्ह ह्ह्ह ह्ह्ह!”
फिर मैं जैसे उसके तन से चिपक गया। और उसकी चूत में अपना वीर्य छोड़ने लगा। संध्या मेरे गर्म वीर्य का अपने शरीर में महसूस कर रही थी। उसे एक अपूर्व शान्ति मिल रही थी। दो जिस्म एक जान हो चुके थे। “संध्या को खड़ा लंड”
दोनों प्रेम से एक दूसरे को निहार रहे थे। अब हमने अपने पैरों को फ़ैला लिया और उन्मुक्त भाव से खुल कर लेट गये। फिर हम आपस में प्यार से लिपट कर गहरी निंद्रा में खोने लगे। दोनों के मन आग शान्त हो गई थी। दोनों के दिलों को सुकून मिल गया था।
अब दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा। वो दोनों एक दूसरे के बिना नहीं रह पाते थे। दोनों एक दूसरे के शरीर को नोचते खसोटते, और फिर जानवरो की तरह चुदाई में लग जाते। बस मौका पाते ही संध्या अपनी चूत की प्यास बुझाने में लग जाती थी। मुझ पर तो जैसे पागलपन की सी दीवानगी चढ़ गई थी। मेरा लण्ड तो कामाग्नि से जलता ही रहता था। लगता था जैसे हम दोनों एक दूसरे के लिये ही बने थे।